पेंशन
पेंशन के लिए नाम जुड़वाने आई थी एक बूढ़ी महिला, मैंने पूछा था “आप अकेली आई है ?,, क्योकि लंबी लाईन मे लगने के बाद नंबर आया था उनका ।
उन्होने थकी हुई नज़र मुझ पर डाली और कहा, हाँ मै ही आई हूँ।
मैंने उनसे एक पेपर मांगा था जिसमे उनके बेटे का नाम हो मतलब घर के मुखिया का नाम हो ताकि उनकी पेंशन शुरू करवाई जा सके,
वो अफसोस भरे लहजे मे बोली मेरा बेटा देगा नहीं मुझे पेपर,
फिर वो चली गई और उनकी पेंशन शुरू नहीं ही पाई।
मै सोच रही थी कि जिसने अपने बेटे के एक एक डॉक्युमेंट्स अपने हाथ से बनवाए है वो उनकी एक पेंशन शुरू करवाने के लिए अपने नाम के पेपर क्यो नहीं देगा ?
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Aajkal ye topic bahut jaruri ban chuka hai,achha laga aapne iske upar socha aur likha.
जवाब देंहटाएंLog bachho ko poori mehnat se palte hai padhate hai unko kaabil banate hai aur jab bachhe bade ho jate hai job karne lagte hai fir unhi logo ko ignore karne lag jate hai, yaha tak ki un maa baap ke sath bhi nahi rehna chahte. Aur agar unke pass koi property ya account balance hai to usey bhi le lete hai, yaha tak ki pension ki money bhi unke pass nahi chorte.
इन गम्भीर मुद्दो पर समाज के लोगों और युवाओं को बुजुर्गों की मदद करनी चाहिए भले ही जितना हो सके उतनी सही
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