बेचारा संजय
8 साल का संजय स्कूल से आकर रो रहा था, वो भाग़ता हुआ अपनी दादी के पास गया और उनके गले लगकर जोर जोर से रोने लगा। दादी ने रोते हुए संजय को बिना उसके रोने का कारण पूछे सिर्फ इतना कहा की संजय चुप हो जाओ, लड़के रोते नहीं है।
उसको अपनी दादी की गोद तो मिली पर एक पहेली के साथ।
कुछ साल बाद संजय के घर वापस आने पर उसकी माँ ने देखा संजय की आंखो मे पानी भरा हुआ था और उसके साथ घर वापस आई उसकी बहन आँसू बहा रही थी ,उसकी माँ श्वेता ने सिर्फ उसकी बहन को गले लगाया और उसकी तरफ ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया,
इस बार संजय शायद उस पहेली को सुलझा चुका था ।
2 साल बाद जॉब के पहले दिन घर आकर बहुत परेशान था संजय, जैसे ही उसके पापा प्रशांत उसके कमरे मे आए वो अपने पापा के गले लगकर रोने लगा, प्रशांत ने उसे दूर धक्का देकर एक हीराकत भरी नज़र उस पर डाली। इस बार संजय को समझ आया वो पहेली थी ही नहीं कभी भी,
वो एक समाज का बनाया हुआ पिंजरा है जिसमे आदमियो को रखा जाता है ताकि वो आदमी बने रहे, पर उसे सिर्फ पिंजरा ही दिखा था रास्ता नहीं दिखा उसमे से निकलने का इसलिए अब वो उसी मे रहता है,
अब संजय की शादी हो चुकी है, अब वो कभी नहीं रोता है,
बस उसके घर से उसकी बीवी और कभी कभी उसके बच्चे के रोने की आवाज आती है,
और अब लोगो और परिवार से उसको असली मर्द होने की पदवी भी मिल चुकी है।
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👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻
जवाब देंहटाएं"Asli mard hone ki padvi" good sarcastic line but somewhere actual reality of the society, i guess
जवाब देंहटाएं👍👍
जवाब देंहटाएं👍👍
जवाब देंहटाएंजब आप अपने प्रियजनों को दर्द में देखते हैं, तो एक आदमी के लिए भी आँसू रोकना मुश्किल होता है।
जवाब देंहटाएंऔर वैसे भी असली आदमी क्या है? क्या अन्य नकली या डमी हैं? मर्दानगी को अक्सर फिल्मों में आंसू बहाकर नहीं, लड़ाई-झगड़े से नहीं, बहादुरी के पैमाने पर मापा जाता है।
लेकिन वे भी पुरुष हैं जो डर जाते हैं, वे वास्तव में ऐसे पुरुष हैं जो एक बच्चे की तरह डरने पर भी लड़ना पसंद करते हैं।
वे भी पुरुष हैं जो आँसू बहाते हैं, वे वास्तव में वे पुरुष हैं जो उन आँसुओं को अपने चेहरे से पोंछते हैं और उठते हैं और संघर्ष करते हैं और लड़ते हैं।