बस की सीट

राघव को काफी देर हो गई थी आज ऑफिस में, अभी 2 ही दिन हुए थे उसे जॉब मिले। 

जैसे ही वो मेट्रो मे एंटर हुआ उसके पीछे एक लड़की भी थी। 

कुछ देर बाद उसके सामने वाली बस की सीट खाली हो गई और वो बैठ गया, राघव की नजर उस लड़की पर गई तो उसने ऐसे देखा जैसे राघव ने उसके हक की कोई चीज ले ली हो, पास ही बैठे एक अधेड़ उम्र के आदमी ने राघव से कहा की तुम्हें तमीज़ नहीं है वो लड़की खडी है और तुम बैठ गए । 

राघव बुरी तरह थका हुआ था दिन भर की भागदौड से पर फिर वो झल्लाकर खड़ा हो गया और वो लड़की इस तरह से बैठी जैसे जंग जीती हो उसने अपने हक की। 

बस की सीट


बस की सीट


राघव के सामने ही कई बार दूसरे लड़को को भी टोका गया इसके लिए और मज़े की बात ये है की बराबरी की बात करने वालों को इसमे कुछ गलत भी नहीं लगता है। 

अगर वो अपने से किसी कमजोर, प्रेगनेंट या बुजुर्ग को सीट दे तो ये उनका अपना मत है और सामाजिक समझ है, पर कोई Female अपना हक कैसे मान सकती है इसे ? 

और अगर कोई आदमी मना कर दे तो उसे बदतमीज़ कह देते है हम। 

 कोई भी Female चाहे माँ हो, पत्नी हो, बहन हो या गर्लफ्रेंड हो,  हम ये क्यों मान लेते है की अगर कोई आदमी हमारे लिए कार का gate खोले या खाने की टेबल पर हमारे लिए कुर्सी खीचे या बस मे उठकर हमे सीट दे तो ही वो अच्छा आदमी है नहीं तो बदतमीज़ है । 

अब राघव को अच्छे से समझ आ गया है कि जब तक बस मे ,मेट्रो मे कोई महिला या लड़की खड़ी है तुम सीट पर बैठ नहीं सकते, क्योकि उस समय तुम आम आदमी नहीं रहते जिसको थकावट होती है या आराम की जरूरत होती है और इसी के चलते उसने और भी बहुत सारे बेवझहा के नियम सीख लिए  है। 

आखिर उसको भी GENTLEMAN का टैग चाहिए लोगो से। 

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